जीवन की दशा

जब भी मैं सोचता हुँ की ये जीवन क्या है? मैं सोच में पर जाता हूँ कई सवाल मुहँ उठाये मेरे सामने खड़े हो जाते है और फिर वे सारे सवाल अपन अंदर कई सवालों को लिए एक विकृत रूप धारण कर लेते है और फिर मेरे दिमाग को शून्य कर जाते है, शून्य जहाँ से इस सृष्टि की शुरुआत होती है फिर ये सृष्टि सृजन करती है और जन्म मृत्यु का कारण बनती है।

जीवन सृष्टि द्वारा रचित उन अनमोल मोतियों में से एक है जो जितनी ठोकरें खाती है उतना ही शौर्य प्राप्त करती है, और शौर्य जीवन की चमक आभा को उस शीर्ष पे ले जाती है जहां से प्रकाश दीप्तिमान होता है।
आज हमने अपने जीवन की दशा को एक दुर्दशा मे परिवर्तित कर दिया है एक ऐसी दुर्दशा जो अपना अस्तित्व ही खोता जा रहा है, भूल गए है हम जन्म क्यूँ लिए है , भूल गए है हम कौन है, भूल गए है हम क्या कर सकते है, हम सबकुछ भूल गए, पता है तो क्या बस इतना की इंसान जन्म लेता है बड़ा होता है और फिर इस सृष्टि मे विलीन हो जाता है बस यही ? नहीं बिल्कुल नहीं!
आत्मा इंसान में परमात्मा के होने का साक्ष्य है जिसे हम युँ ही विनील नहीं होने दे सकते, हमें समझना होगा, हमें अपने आप को समझाना होगा, हमें अपनी शक्तियों को समझना होगा। इंसानी शक्ति अपरम्पार है, इसकी ऊर्जा विशाल है इसका सही इस्तेमाल करना होगा ।
इंसान का जन्म सिर्फ मरने के लिए नहीं होता है, इंसान का जन्म धरती की उस हिस्से को पूरा करने के लिए होता है जो हिस्सा उसके बिना अधूरा है लेकिन मनुष्य भटकता रहता है उस हिस्से की खोज मे, जो कहीं लुप्त है।
जो इंसान अपने सभी कर्मों के यथावत पूरा करते हुए चला जाता है वही धरती के उससे हिस्से तक पहुंचता है और जो इंसान सिर्फ सोचने मे अपना समय व्यर्थ गंवाता है वह जीवन मरण के इस चक्र मे पिसता रहता है उसे कहीं शांति नहीं मिलती अंततः वह विलुप्त हो जाता है।
लोग आज जीवन का वास्तविक अस्तित्व खो रहे है लोगों ने अपने जीवन को सीमित कर लिया है। आज हमारी जीवन की दशा इतनी बुरी हो चुकी है कि हम सच-झूठ, पाप-पुण्य, कर्म-दुष्कर्म, इन सभी मे भेद करना भूल गए है। और भेद करना आता भी है तो किसमें - इंसानों में हम भेद करते है, हमेशा जात-पात के नाम पर लड़ते रहते है। क्या इसी का नाम जीवन है?
मेरे समझ से तो नहीं !!!
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By Amit Kumar Soni
#LIFE #AKS 

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